hindisamay head


अ+ अ-

कविता

इच्छाएँ

संजय कुंदन


इच्छाएँ पीछा नहीं छोड़तीं
वह नजर आ ही जाती हैं खूँटी पर कमीजों के बीच टँगी हुईं
या ताखे पर दवाओं के बीच पसरी हुईं

उन्हें बार-बार बुहार कर बाहर कर देता हूँ धूल के साथ
थमा देता हूँ कबाड़ी को रद्दी कागज के साथ
लेकिन एक दिन अचानक वे प्रकट होती हैं चौखट के बीच से
लाल चीटियों के कोरस में
मेरी नींद में दखल देती हैं झींगुरों के सुर में सुर मिला कर

वे यह भूलने को तैयार नहीं कि
कभी मैंने उनके साथ जीने-मरने का वादा किया था।

 


End Text   End Text    End Text